श्री गणेश जी की आरती - 1


जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।

एकदन्त दयावन्त चारभुजाधारी। माथे पर तिलक सोहे, मूस की सवारी।।


पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा लड्डुअन का भोग लगे सन्त करे सेवा।

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।


अँधे को आँख देत कोढ़िन को। काया बाँझन को पुत्र देत निर्धन को माया।

सूर श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।


जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।


श्री वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटी समप्रभा।

निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व-कार्येशु सर्वदा॥


श्री गणेश जी की आरती - 2


सुखकर्ता दुःखहर्ता वार्ता विघ्नाची, नूर्वी पूर्वी प्रेम कृपा जयाची।

सर्वांगी सुन्दर उटी शेंदुराची, कंठी झलके माल मुक्ता फलांची॥


जयदेव जयदेव जयदेव जयदेव, जयदेव जयदेव जय मंगल मूर्ति।

दर्शनमात्रे मनःकामना पूर्ति, जयदेव जयदेव॥


रत्नखचित फरा तुझ गौरीकुमरा, चंदनाची उटी कुमकुम केशरा।

हीरे जडित मुकुट शोभतो बरा, रुन्झुनती नूपुरे चरनी घागरिया॥


जयदेव जयदेव जयदेव जयदेव, जयदेव जयदेव जय मंगल मूर्ति।

दर्शनमात्रे मनःकामना पूर्ति, जयदेव जयदेव॥


लम्बोदर पीताम्बर फनिवर वंदना, सरल सोंड वक्रतुंडा त्रिनयना।

दास रामाचा वाट पाहे सदना, संकटी पावावे निर्वाणी रक्षावे सुरवर वंदना॥


जयदेव जयदेव जयदेव जयदेव, जयदेव जयदेव जय मंगल मूर्ति।

दर्शनमात्रे मनःकामना पूर्ति, जयदेव जयदेव॥


शेंदुर लाल चढायो अच्छा गजमुख को, दोन्दिल लाल बिराजे सूत गौरिहर को।

हाथ लिए गुड लड्डू साई सुरवर को, महिमा कहे ना जाय लागत हूँ पद को॥


जय जय जय जय जय, जय जय जी गणराज विद्यासुखदाता।

धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मत रमता, जय देव जय देव॥


अष्ट सिधि दासी संकट को बैरी, विघन विनाशन मंगल मूरत अधिकारी।

कोटि सूरज प्रकाश ऐसे छबी तेरी, गंडस्थल मद्मस्तक झूल शशि बहरी॥


जय जय जय जय जय, जय जय जी गणराज विद्यासुखदाता।

धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मत रमता, जय देव जय देव॥


भावभगत से कोई शरणागत आवे, संतति संपत्ति सबही भरपूर पावे।

ऐसे तुम महाराज मोको अति भावे, गोसावीनंदन निशिदिन गुण गावे॥


जय जय जी गणराज विद्यासुखदाता।

धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मत रमता, जय देव जय देव॥