जय गोरख देवा, जय गोरख देवा ।
कर कृपा मम ऊपर, नित्य करूँ सेवा ॥
शीश जटा अति सुंदर, भाल चन्द्र सोहे ।
कानन कुंडल झलकत, निरखत मन मोहे ॥
गल सेली विच नाग सुशोभित, तन भस्मी धारी ।
आदि पुरुष योगीश्वर, संतन हितकारी ॥
नाथ नरंजन आप ही, घट घट के वासी ।
करत कृपा निज जन पर, मेटत यम फांसी ॥
रिद्धी सिद्धि चरणों में लोटत, माया है दासी ।
आप अलख अवधूता, उतराखंड वासी ॥
अगम अगोचर अकथ, अरुपी सबसे हो न्यारे ।
योगीजन के आप ही, सदा हो रखवारे ॥
ब्रह्मा विष्णु तुम्हारा, निशदिन गुण गावे ।
नारद शारद सुर मिल, चरनन चित लावे ॥
चारो युग में आप विराजत, योगी तन धारी ।
सतयुग द्वापर त्रेता, कलयुग भय टारी ॥
गुरु गोरख नाथ की आरती, निशदिन जो गावे ।
विनवित बाल त्रिलोकी, मुक्ति फल पावे ॥