।। श्री परशुराम जी की आरती - 1 ।।
ओउम जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी।
सुर नर मुनिजन सेवत, श्रीपति अवतारी।।
ओउम जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी।
जमदग्नी सुत नरसिंह, मां रेणुका जाया।
मार्तण्ड भृगु वंशज, त्रिभुवन यश छाया।।
ओउम जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी।
कांधे सूत्र जनेऊ, गल रुद्राक्ष माला।
चरण खड़ाऊँ शोभे, तिलक त्रिपुण्ड भाला।।
ओउम जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी।
ताम्र श्याम घन केशा, शीश जटा बांधी।
सुजन हेतु ऋतु मधुमय, दुष्ट दलन आंधी।।
ओउम जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी।
मुख रवि तेज विराजत, रक्त वर्ण नैना।
दीन-हीन गो विप्रन, रक्षक दिन रैना।।
ओउम जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी।
कर शोभित बर परशु, निगमागम ज्ञाता।
कंध चार-शर वैष्णव, ब्राह्मण कुल त्राता।।
ओउम जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी।
माता पिता तुम स्वामी, मीत सखा मेरे।
मेरी बिरत संभारो, द्वार पड़ा मैं तेरे।।
ओउम जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी।
अजर-अमर श्री परशुराम की, आरती जो गावे।
पूर्णेन्दु शिव साखि, सुख सम्पति पावे।।
ओउम जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी।
।। श्री परशुराम जी की आरती - 2 ।।
शौर्य तेज बल-बुद्घि धाम की। आरती कीजे श्री परशुराम की ॥
रेणुकासुत जमदग्नि के नंदन। कौशलेश पूजित भृगु चंदन॥
अज अनंत प्रभु पूर्णकाम की। आरती कीजे श्री परशुराम की ॥
नारायण अवतार सुहावन। प्रगट भए महि भार उतारन॥
क्रोध कुंज भव भय विराम की। आरती कीजे श्री परशुराम की ॥
परशु चाप शर कर में राजे। ब्रम्हसूत्र गल माल विराजे॥
मंगलमय शुभ छबि ललाम की। आरती कीजे श्री परशुराम की ॥
जननी प्रिय पितु आज्ञाकारी। दुष्ट दलन संतन हितकारी॥
ज्ञान पुंज जग कृत प्रणाम की। आरती कीजे श्री परशुराम की ॥
परशुराम वल्लभ यश गावे। श्रद्घायुत प्रभु पद शिर नावे॥
छहहिं चरण रति अष्ट याम की। आरती कीजे श्री परशुराम की ॥