प्रेम प्रभु का बरस रहा है, पी ले अमृत प्यासे।
सातों तीरथ तेरे अंदर, बाहर किसे तलाशे॥
कण कण में हरि, क्षण क्षण में हरि, मुस्कुराओ में आशुवन में हरि।
मन की आंखे तूने खोली, तो ही दर्शन पाएगा।
पता नहीं किस रूप में आकर नारायण मिल जाएगा॥
नियति भेद नहीं करती, जो लेती है वो देती है।
जो बोयेगा वो काटेगा, ये जग कमों की खेती है।
यदि कर्म तेरे पावन है सभी, डूबेगी नहीं तेरी नाव कभी।
तेरी बांह पकड़ने को, वो भेष बदल के आएगा।
पता नहीं किस रूप में आकार नारायण मिल जाएगा॥
नेकी व्यर्थ नहीं जाती, हरी लेखा-जोखा रखते हैं।
औरों को फूल दिए जिसने, उसके भी हाथ महकते हैं।
कोई दीप मिले तो बाती बन, तू भी तो किसी का साथी बन।
मन को मानसरोवर कर ले, तो ही मोती पाएगा।
पता नहीं किस रूप में आकार नारायण मिल जाएगा॥
कान लगाके बातें सुन ले, सूखे हुए दरख्तों की।
लेता है भगवान परीक्षा, सबसे प्यारे भक्तों की।
एक प्रश्न है गहरा जिसकी, हरी को थाह लगानी है।
तेरी श्रद्धा सोना है, या बस सोने का पानी है।
जो फूल धरे हर डाली पर, विश्वास तो रख उस माली पर।
तेरे भाग में पत्थर है तो, पत्थर ही खिल जाएगा।
पता नहीं किस रूप में आकर नारायण मिल जाएगा॥
पता नहीं किस रूप मैं आकार नारायण मिल जाएगा॥