॥ दोहा ॥
श्री गुरु चरणन ध्यान धर, सुमीर सच्चिदानंद ।
श्याम चालीसा भजत हूँ, रच चौपाई छंद ।
॥ चौपाई ॥
श्याम-श्याम भजि बारंबारा । सहज ही हो भवसागर पारा ॥
इन सम देव न दूजा कोई । दिन दयालु न दाता होई ॥
भीम सुपुत्र अहिलावाती जाया । कही भीम का पौत्र कहलाया ॥
यह सब कथा कही कल्पांतर । तनिक न मानो इसमें अंतर ॥
बर्बरीक विष्णु अवतारा । भक्तन हेतु मनुज तन धारा ॥
बासुदेव देवकी प्यारे । जसुमति मैया नंद दुलारे ॥
मधुसूदन गोपाल मुरारी । वृजकिशोर गोवर्धन धारी ॥
सियाराम श्री हरि गोबिंदा । दिनपाल श्री बाल मुकुंदा ॥
दामोदर रण छोड़ बिहारी । नाथ द्वारिकाधीश खरारी ॥
राधाबल्लभ रुक्मणि कंता । गोपी बल्लभ कंस हनंता ॥
मनमोहन चित चोर कहाए । माखन चोरि-चारि कर खाए ॥
मुरलीधर यदुपति घनश्यामा । कृष्ण पतित पावन अभिरामा ॥
मायापति लक्ष्मीपति ईशा । पुरुषोत्तम केशव जगदीशा ॥
विश्वपति जय भुवन पसारा । दीनबंधु भक्तन रखवारा ॥
प्रभु का भेद न कोई पाया । शेष महेश थके मुनिराया ॥
नारद शारद ऋषि योगिंदरर । श्याम-श्याम सब रटत निरंतर ॥
कवि कोदी करी कनन गिनंता । नाम अपार अथाह अनंता ॥
हर सृष्टी हर सुग में भाई । ये अवतार भक्त सुखदाई ॥
ह्रदय माहि करि देखु विचारा । श्याम भजे तो हो निस्तारा ॥
कौर पढ़ावत गणिका तारी । भीलनी की भक्ति बलिहारी ॥
सती अहिल्या गौतम नारी । भई श्रापवश शिला दुलारी ॥
श्याम चरण रज चित लाई । पहुंची पति लोक में जाही ॥
अजामिल अरु सदन कसाई । नाम प्रताप परम गति पाई ॥
जाके श्याम नाम अधारा । सुख लहहि दुःख दूर हो सारा ॥
श्याम सलोवन है अति सुंदर । मोर मुकुट सिर तन पीतांबर ॥
गले बैजंती माल सुहाई । छवि अनूप भक्तन मान भाई ॥
श्याम-श्याम सुमिरहु दिन-राती । श्याम दुपहरि कर परभाती ॥
श्याम सारथी जिस रथ के । रोड़े दूर होए उस पथ के ॥
श्याम भक्त न कही पर हारा । भीर परि तब श्याम पुकारा ॥
रसना श्याम नाम रस पी ले । जी ले श्याम नाम के ही ले ॥
संसारी सुख भोग मिलेगा । अंत श्याम सुख योग मिलेगा ॥
श्याम प्रभु हैं तन के काले । मन के गोरे भोले-भाले ॥
श्याम संत भक्तन हितकारी । रोग-दोष अध नाशे भारी ॥
प्रेम सहित जब नाम पुकारा । भक्त लगत श्याम को प्यारा ॥
खाटू में हैं मथुरावासी । पारब्रह्म पूर्ण अविनाशी ॥
सुधा तान भरि मुरली बजाई । चहु दिशि जहां सुनी पाई ॥
वृद्ध-बाल जेते नारि नर । मुग्ध भये सुनि बंशी स्वर ॥
हड़बड़ कर सब पहुंचे जाई । खाटू में जहां श्याम कन्हाई ॥
जिसने श्याम स्वरूप निहारा । भव भय से पाया छुटकारा ॥
॥ दोहा ॥
श्याम सलोने संवारे, बर्बरीक तनुधार ।
इच्छा पूर्ण भक्त की, करो न लाओ बार ॥